Sunday 21 July 2013

संस्कृतिकर्मियों की गिरफ्तारी और यातना का विरोध करें


कहानियां इस भरोसे को लोगों के बीच बांटने का एक तरीका हैं कि इंसाफ करीब है. और ऐसे एक भरोसे के लिए बच्चे, औरतें, और मर्द एक हैरतअंगेज बहादुरी के साथ लड़ेंगे. इसीलिए तानाशाह किस्से सुनाने से डरते हैं: सारी कहानियां किसी न किसी तरह उनके पतन की कहानियां हैं. -जॉन बर्जर

इंसाफ और मुक्ति की जनता की आवाजों को दबाने की फासीवादी कार्रवाइयों के तहत फासीवादी भारतीय राज्य ने 16 जुलाई को बिहार के पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) जिले में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र संगठन भगतसिंह छात्र मोर्चा और मशाल सांस्कृतिक मंच के साथियों को गिरफ्तार किया और उन्हें यातनाएं दीं. रिवॉल्यूशनरी कल्चरल फ्रंट (आरसीएफ) उत्पीड़ित जनता के सांस्कृतिक प्रतिरोध के फासीवादी दमन की कड़े शब्दों में निंदा करता है. इन संगठनों के छात्र-कार्यकर्ता प्रेमचंद जयंती के मौके पर बिहार के दौरे पर थे, जिस दौरान वे जनता के बीच राजनीतिक चेतना और संघर्ष के गीत, नुक्कड़ नाटक और जनसभाएं आयोजित कर रहे थे. मोतिहारी के पहले उन्होंने 15 जुलाई को वैशाली के लालगंज इलाके में अपने कार्यक्रम पेश किए थे. 16 जुलाई को दोपहर 2 बजे वे मोतिहारी प्रखंड के देवाकुलिया चौक पर गीत और नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति कर रहे थे, कि सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन, एसटीएफ और स्थानीय पुलिस की चार गाड़ियां आईं और उन्हें घेर लिया. दोनों संगठनों द्वारा जारी किए गए बयान के मुताबिक, हथियारबंद राजकीय बलों ने:

हथियारों के साथ पोजीशन ले ली, हमारे कार्यक्रम को रोक दिया गया, गाली-गलौज करने लगे. देवकुलिया चौक की दिन भर के लिए नाकेबंदी कर दी गयी और सभी गाड़ियों की तलाशी ली जाने लगी. हम लोगों से पूछताछ करने लगे कि तुम लोग कौन हो? यहां क्या करने आए हो? किसने बुलाया है? क्या उद्देश्य है? और कहा कि तुम लोग माओवादी हो. हमलोगों ने बताया कि हम मशाल सांस्कृतिक मंच, बीएचयू से हैं, हमने 31 जुलाई को प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर विभिन्न जगहों पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया है, हम सब बीएचयू के छात्र हैं. आई.डी. कार्ड भी दिखाए, उसके बाद हमारे बैगों की तलाशी ली गई. कुछ भी बरामद न होने पर हमें फेनहरा थाने ले जाया गया.

हथियारबंद बलों ने कम से कम 12 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें इन दोनों संगठनों के लोग भी शामिल थे. उनके बयान के मुताबिक, थाने में पुलिस और सीआरपीएफ ने गिरफ्तार किए गए लोगों को यातनाएं दीं:

थाने में एएसपी संजय कुमार सिंह के नेतृत्व में थानाध्यक्ष देवेन्द्र कुमार पाण्डेय, एसटीएफ़, सीआरपीएफ़ की कोबरा बटालियन ने हमसे पूछताछ की: पैसे कहां से मिलते हैं? यहां क्या करने आये थे? किसने बुलाया था? हमारे साथ घंटों पूछताछ, गाली-गलौज और डंडे लात-घूंसे से मारा-पीटा गया, टार्चर किया गया, तथा कोबरा बटालियन के कमान्डेंट ने मुर्गा बनाकर कमर पर डंडे से मारा....हमलोगों के सेलफोन, बैग एवं सारे सामान को जब्त कर लिया गया और फिर मोतिहारी थाने ले जाया गया और जेल में बंद कर दिया गया, रात में खाना -पानी तक भी नहीं दिया गया तथा लैट्रिन बाथरूम पर भी पाबन्दी लगा दी गयी.

उत्पीड़ित जनता पर साम्राज्यवादी-ब्राह्मणवादी शासक वर्ग का उत्पीड़न और दमन ज्यों ज्यों तेज हो रहा है, जनता के जनवादी अधिकारों और उसके संसाधनों पर हमले बढ़ रहे हैं, त्यों त्यों जनता का जुझारू संघर्ष भी मजबूत हो रहा. इसकी संगत में जनता प्रतिरोध की क्रांतिकारी सांस्कृति भी विकसित कर रही है. संस्कृति मौजूदा शासक वर्ग द्वारा अपने उत्पीड़न और शोषण को बनाए रखने का एक अहम औजार है और जनता इस औजार को अपनी क्रांतिकारी संस्कृति के जरिए भोथरा कर रही है. इसलिए शासक वर्ग लगातार जनता के संस्कृतिकर्मियों और लेखकों, कवियों, पत्रकारों और कलाकारों पर दमन को तेज कर रहा है. उसका फरमान है कि जो भी कहा, लिखा और गाया जाए, जो भी सृजित किया जाए, वह शासक वर्ग की हिमायत में हो. इस फरमान को नकार देने वालों पर राजकीय जुल्म का सिलसिला चल रहा है. हमने देखा है कि किस तरह सुधीर ढवले, जीतन मरांडी, अरुण फरेरा, कबीर कला मंच के कलाकारों आदि की गिरफ्तारियां हुई हैं और हो रही हैं.

लेकिन जहां जुल्म है, वहां इंसाफ की लड़ाई भी है और उसकी उम्मीदें भी. और जहां उम्मीदें हैं, वहां गीत हैं, कविताएं हैं, नाटक हैं, कहानियां हैं. शासक वर्ग चाहे जितना भी दमन कर ले, चाहे जितनी भी आवाजों को दबाने की कोशिश करे, जनता के संघर्ष बढ़ते रहेंगे और उसकी आवाजें ऊंची और ऊंची होती रहेंगी.

0 comments:

Post a Comment